गुरुवार, 6 मई 2010

वातायन-मई,२०१०


वातायन के इस अंक में प्रस्तुत है ’हम और हमारा समय’ के अंतर्गत वरिष्ठ लेखक, पत्रकार और अंतराष्ट्रीय मामलों के कूटिनीति विशेषज्ञ डॉ० वेदप्रताप वैदिक का आलेख - ’काश, यह भारत ने किया होता’, वरिष्ठ कवि भगवत रावत की तीन कविताएं, क्रान्ति दिवस (१० मई) पर मेरा आलेख - ’तीसरी आजादी की लड़ाई’, वरिष्ठ कथाकार-पत्रकार बलराम की कहानी - ’गोवा में तुम’ और वरिष्ठ कथाकार बद्री सिंह भाटिया की कहानी - ’घुग्घू’.
आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी.
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हम और हमारा समय
मुद्दा
काश, यही काम भारत करता !
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कई बार मैं सोचता हूं कि क्या दुनिया में ईरान जैसा भी कोई देश है ? इतना निडर, इतना निष्पक्ष और इतना सच बोलनेवाला देश ईरान के अलावा कौनसा है ? किसी ज़माने में माना जाता था कि गांधी और नेहरू का भारत निष्पक्ष है, निडर है और सत्यनिष्ठ है इस मान्यता के बावजूद जवाहरलाल नेहरू की नीतियां किस मुद्दे पर कितनी लोच खा जाती थीं, यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विद्यार्थी भली-भांति जानते हैं लेकिन ईरान में जबसे इस्लामी क्रांति हुई है, ईरान ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बहादुरी का नया रेकार्ड कायम किया है इस्लामी क्रांति के पिता आयतुल्लाह खुमैनी कहा करते थे कि अमेरिका बड़ा शैतान है और रूस छोटा शैतान है हम दोनों शैतानों से अलग रहना चाहते हैं एक अर्थ में ईरान ने दुनिया को बताया कि सच्ची निर्गुटता क्या होती है अब जबकि गुट खत्म हो गए हैं, ईरान अकेला देश है, जो विश्व अंत:करण की आवाज़ बन गया है काश कि यह काम भारत करता ! ईरान ने सारे परमाणु शस्त्र को खत्म करने का शंखनाद कर दिया है
ईरान की हिम्मत देखिए कि उसने तेहरान में परमाणु निरस्त्रीकरण सम्मेलन कर डाला अभी ओबामा के वाशिंगटन-सम्मेलन की स्याही सूखी भी न थी कि तेहरान ने वही मुद्दा उठाया और नारा लगाया कि परमाणु ऊर्जा सबको और परमाणु हथियार किसी को नहीं जैसा सम्मेलन अमेरिका ने किया, वैसा ही ईरान ने भी कर दिया लेकिन ईरान के सम्मेलन में 60 देश पहुंचे जबकि अमेरिका में 47 ! यह ठीक है कि वाशिंगटन में राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों की भीड़ थी और तेहरान में ज्यादातर विदेश मंत्री और अफसरगण थे लेकिन तेहरान के भाषणों और प्रस्ताव पर गौर करें तो हम चकित रह जाते हैं
वाशिंगटन सम्मेलन की मूल चिंता ईरान थी और तेहरान सम्मेलन की अमेरिका ये दोनों सम्मेलन एक-दूसरे के विरूद्घ थे अमेरिका ने ईरान को नहीं बुलाया लेकिन ईरान ने अमेरिका को बुलाया ईरानी सम्मेलन में अमेरिका शामिल हुआ अन्य परमाणु महाशक्तियों के प्रतिनिधि भी आए भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधि भी ! ईरान को अमेरिका ने इसलिए नहीं बुलाया कि वह सम्मेलन परमाणु प्रसार के खिलाफ था और ईरान के बारे में अमेरिका को गहरा शक है कि वह परमाणु हथियार बना रहा है अमेरिकी सम्मेलन का दूसरा प्रमुख लक्ष्य परमाणु हथियारों को आतंकवादियों के हाथों में जाने से रोकना था इन दोनों लक्ष्यों का उल्लंघन करनेवाला पाकिस्तान वाशिंगटन में बुलबुल की तरह चहक रहा था उसके प्रधानमंत्री ने अपने देश की कारस्तानियों के लिए क्षमा मांगने की बजाय परमाणु-सुरक्षा के बारे में तरह-तरह के उपदेश झाड़े ओबामा उनसे अलग से मिले भी ! अमेरिकी सम्मेलन में अनेक मीठी-मीठी बातें कही गईं दुनिया को परमाणु-शस्त्र् रहित बनाने की बातें भी कही गईं लेकिन किसी भी परमाणु-शक्ति ने यह नहीं बताया कि वे अपने शस्त्र्-भंडार में कहां तक कटौती कर रहे हैं यह ठीक है कि अमेरिका और रूस ने आठ अप्रैल को चेक राजधानी प्राहा में एक संधि पर दस्तखत किए, जिसके तहत वे अपने परमाणु-शस्त्र में 30 प्रतिशत की कटौती करेंगे लेकिन जो शेष 70 प्रतिशत शस्त्र् हैं, वे इस समूची दुनिया का समूल नाश कई बार करने में समर्थ हैं यह भी सराहनीय है कि कुछ राष्ट्रों ने अपने-अपने परमाणु-ईंधन के भंडारों को घटाने का भी वादा किया है लेकिन अमेरिका में आयोजित यह विश्व सम्मेलन कुछ इस अदा से संपन्न हुआ कि मानो कुछ बड़े पहलवान अपनी चर्बी घटाने के नाम पर अपने बाल कटवाने को तैयार हो गए हों
ऐसा लगता है कि ओबामा ने यह सम्मेलन अपनी चौपड़ बिछाने के लिए आयोजित किया था हमले की चौपड़ ! ईरान पर हमला करने के पहले वे शायद विश्व जनमत को अपने पक्ष में करने की जुगत भिड़ा रहे हैं वे नहीं जानते कि वे क्लिंटन और बुश से भी ज्यादा दुर्गति को प्राप्त होंगे ईरान इराक नहीं है क्या वे भूल गए कि राष्ट्रपति जिमी कार्टर को ईरान ने कितना कड़ा सबक सिखाया था ? दुनिया के देश ईरान पर हमले का घोर विरोध तो करेंगे ही, वे उस पर कठोर प्रतिबंध लगाने के भी विरूद्घ हैं भारत, रूस, चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रों ने प्रतिबंधों का तीव्र विरोध किया है भारत और रूस चाहते हैं कि ईरान परमाणु अप्रसार संधि का उल्लंघन नहीं करे लेकिन अगर अमेरिका इन दोनों राष्ट्रों पर दबाव डालेगा तो उसे निराशा ही हाथ लगेगी ईरान ऐसा राष्ट्र नहीं है कि जिसे कोई ब्लेकमेल कर सके अमेरिका की खातिर भारत और रूस ईरान को क्यों दबाएंगें? ईरान को दबाया नहीं जा सकता उसे समझाया जा सकता है
ईरान कैसा राष्ट्र है, इसका अंदाज़ सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनई, राष्ट्रपति अहमदीनिजाद और विदेश मंत्र्ी मुत्तकी के भाषणों से ही हो जाना चाहिए इन नेताओं ने अमेरिका को दुनिया का सबसे बड़ा दुश्मन घोषित किया है खामेनई ने पूछा है कि मानव जाति के इतिहास में परमाणु बम-जैसा पापपूर्ण हथियार सबसे पहले किसने बनाया और किसने उसे चलाया ? अमेरिका ने ! इस्लाम के मुताबिक यह 'हराम' है ऐसा काम करनेवाले देश को विश्व के सभ्य समाज से निकाल बाहर क्यों नहीं किया जाए ? ऐसा धांसू बयान तो निकिता ख्रुश्चेव ने महासभा में जूता बजाते समय भी नहीं दिया था
अहमदीनिजाद ने मांग की है कि सुरक्षा परिषद में पांचों महाशक्तियों को वीटो से वंचित किया जाए या अन्य महत्वपूर्ण देशों को भी यह अधिकार दिया जाए अमेरिका को क्या अधिकार है कि वह जून में परमाणु-अप्रसार सम्मेलन बुलवाए ? जिस देश ने परमाणु प्रसार में सबसे कुटिल भूमिका अदा की, जिसने इस्राइल जैसे देश को गुपचुप मदद की, वह राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी का सदस्य रहने के काबिल नहीं है विदेश मंत्री मुत्तकी ने मांग की है कि कुछ ईमानदार राष्ट्र मिलकर परमाणु अप्रसार संधि के प्रावधान चार और छह को लागू करवाने पर ज़ोर दें ताकि हम सचमुच परमाणु शस्त्र्रहित विश्व का निर्माण कर सकें
वास्तव में 40 साल पहले संपन्न हुई यह संधि घोर सामंती है भारत इसका सदस्य नहीं बना लेकिन उसने इसका कड़ा विरोध भी नहीं किया यह परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों को हथियार बढ़ाने की पूरी छूट देती है लेकिन परमाणु शक्ति रहित राष्ट्रों का गला घोंट देती है ईरान की कमजोरी यह है कि उसने इस संधि पर उस समय दस्तखत कर दिए थे और अब वह इसका विरोध कर रहा है इस मामले में भारत का पक्ष कहीं अधिक मजबूत है वास्तव में भारत को चाहिए था कि परमाणु शक्ति बनते ही वह परमाणु विश्व-निरस्त्रीकरण का शंखनाद करता 1959 में नेहरू ने जिस पूर्ण और व्यापक निरस्त्रीकरण की बात महासभा में कहीं थी, उसे अमली जामा पहलाने का सही वक्त यही है जो झंडा आज ईरान उठाए हुआ है, वह आज भारत के हाथ में होता तो बात ही कुछ और होती !
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4 टिप्‍पणियां:

सुरेश यादव ने कहा…

डा.वेड प्रताप वैदिक जी का आलेख इस कदर विचारोत्तेजक ,स्पष्ट ,और यथार्थ से जुडा है कि शब्द शब्द पढ़ने को विवश हुआ .अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर आप की पकड़ विशेष रूप से मध्य एशिया और चीन के वारे में तो जवाव ही नहीं.आप को साधुवाद.चंदेल जी को इस चुनाव के लिए धन्यवाद.

PRAN SHARMA ने कहा…

" JO JHANDA AAJ IRAN UTHAAYE HUA
HAI,VAH BHARAT KE HAATH MEIN HOTA
TO BAAT HEE KUCHH AUR HOTEE."
VICHAARNIY BAAT HAI.

सुरेश यादव ने कहा…

डा.वेदप्रताप वैदिक जी के आलेख पर टिप्पड़ी भेजते समय उनके नाम में यूनीकोड के उपयोग से गलती रह गई जिसे मैं टिप्पड़ी प्रेषित करने के बाद देख पाया हूँ .कृपया सुधार कर पढ़ें मैंक्षमाप्रार्थी हूँ..

सुभाष नीरव ने कहा…

इतना दमदार, विचारोत्तेजक आलेख ! डा0 वेद प्रताप वैदिक को यहां 'वातायन' पर पढ़ना भी सुखद लगा।