मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

पत्रिका चर्चा


समीक्षा

अमेरिकी हिन्दी कहानीकारों पर केन्द्रित ’शोध दिशा’ के विशेषांक

रूपसिंह चन्देल

’शोध दिशा’ त्रैमासिक का जुलाई-सितम्बर और अक्टूबर-दिसम्बर,२०१० अंक अमेरिका-वासी हिन्दी कहानीकारों पर केन्द्रित है जिसका अतिथि सम्पादन ह्यूस्टन (अमेरिका) निवासी हिन्दी की चर्चित कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद ने किया है. दोनों अंक इला प्रसाद के अथक श्रम और रचना चयन की निष्पक्षता को प्रमाणित करते हैं. निष्पक्षता से आभिप्राय यह कि आज जब दूर देशों में रह रहे हिन्दी साहित्यकार साहित्य की मुख्यधारा (यदि कोई है) में अपनी पहचान के लिए संघर्षरत रहते हुए भारत की भांति ही क्षुद्र साहित्यिक राजनीति का शिकार होने से अपने को नहीं बचा पा रहे वहीं इला प्रसाद ने ’शोध दिशा’ में अमेरिका के उन समस्त कहानीकारों को समेटने का प्रयास किया है, जो गंभीरतापूर्वक सृजनरत हैं. (इला प्रसाद)

जुलाई-सितम्बर,२०१० अंक में जिन कहानीकारों की कहानियों से गुजर कर अमेरिका के हिन्दी कहानीकारों की जो सशक्त तस्वीर हमारे समक्ष उपस्थित होती है, उनमें हैं स्व.सोमावीरा (लांड्रोमैट), उषा प्रियंवदा (वापसी), रमेशचन्द्र धुस्सा (बहुत अच्छा आदमी), डॉ. कमलादत्त (धीरा पंडित,केकड़े और मकड़ियां), डॉ. उषादेवी कोल्हटकर (मेहमान), उमेश अग्निहोत्री (लकीर), डॉ. सुषम बेदी (अवसान), अनिलप्रभा कुमार (वानप्रस्थ), सुदर्शन प्रियदर्शनी (धूप), और डॉ. सुधा ओम ढींगरा (कौन-सी ज़मीन अपनी).

इन कहानियों में जड़ों से उखड़ने की पीड़ा, नारी जीवन की विडंबना, प्रवासी देश की स्थितियों से तादात्म्य स्थापित करने के प्रयास, कुंठा और संत्रास को गहनता से उद्घाटित किया गया है. इन्ही स्थितियों को व्याख्यायित करती कहानियां अक्टूबर-दिसम्बर,२०१० अंक में भी पाठकों को आकर्षित करती हैं. इस अंक के कथाकार और उनकी कहानियां हैं – स्वदेश राणा (ताहिरा के ख़त), डॉ. विशाखा ठक्कर (पेशेंट पार्किंग), रेणु ’राजवंशी गुप्ता (कौन कितना निकट), राजश्री (मैं बोस्नाई नहीं ), अंशु जौहरी (वह जो अटूट नहीं), इला प्रसाद (उस स्त्री का नाम), अमरेन्द्र कुमार (एक दिन सुबह), सौमित्र सक्सेना (संदेश), रचना श्रीवास्तव (पार्किंग), पुष्पा सक्सेना (वर्जिन मीरा), और प्रतिभा सक्सेना (घर).

पत्रिका के प्रथम कहानी विशेषांक में इला प्रसाद ने अमेरिका के आप्रवासी हिन्दी साहित्य पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए लिखा – “अपेक्षाकृत नए, किंतु तेजी से समृद्ध हो रहे इस साहित्य को हिन्दी साहित्य की मुख्य धारा का अंग बनना अभी बाकी है. कुछ गिने-चुने नाम हैं, जो भारत में अमेरिकी आप्रवासी साहित्य के संबन्ध में जानकारी का श्रोत हैं अन्यथा साहित्यकारों की एक बहुत बड़ी संख्या है, जो निरंतर सृजनशील है और हिन्दी साहित्य का आम पाठक, जिनमें लेखक और आलोचक भी हैं, उनसे अपरिचित हैं. हिन्दी साहित्य के कोष में अपने अनुभव से हर रोज़ कुछ नया और सार्थक जोड़ता, दिन-प्रतिदिन मुखर और सशक्त होता साहित्यकारों का यह समुदाय अब तक अनुल्लिखित या उपेक्षित ही कहा जाएगा.”---- इला जी आगे कहती हैं - “ वेब पत्रिकाओं और ब्लॉगों की दुनिया ने आप्रवासी अमेरिकी साहित्य को भी सामने लाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है और निभा रही है. सच तो यह है कि विभिन्न देशों में फैले मुझ-जैसे रचनाकारों की एक पूरी पीढ़ी है, जो वेब पत्रिकाओं के युग में और उसके माध्यम से विकसित हुई है, किन्तु भारत का बहु संख्यक हिन्दी-पाठक, उस दुनिया से अभी भी अनभिज्ञ है .”

अमेरिका निवासी हिन्दी कहानीकारों को शोध दिशा के माध्यम से एक मंच पर उपस्थित करने का जो प्रयास इला प्रसाद ने किया है वह श्लाघनीय है. अक्टूबर-दिसम्बर,२०१० अंक में उन्होंने भाषा और साहित्य संबन्धी एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है. उनका कथन है कि जिस प्रकार विभिन्न देशों में अंग्रेजी में लिखे जा रहे साहित्य को अंग्रेजी साहित्य और उसके लेखक को अंग्रेजी साहित्य के लेखक के रूप में जाना-पहचाना जाता है उसी प्रकार अमेरिका-ब्रिटेन आदि देशों में रचनारत हिन्दी लेखकों को आप्रवासी हिन्दी लेखक न मानकर केवल हिन्दी लेखक ही माना-जाना चाहिए. इला जी का यह तर्क विचारणीय है. इला प्रसाद के अतिथि सम्पादन में प्रकाशित ’शोध दिशा’ के दोनों ही कहानी विशेषांक संग्रहणीय हैं.

पत्रिका के सम्पादक डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल ने एक कुशल-प्रतिबद्ध रचनाकार को अतिथि सम्पादन का कार्यभार सौंपकर हिन्दी पाठकों और अमेरिकी कहानीकारों के प्रति स्तुत्य कार्य किया. इन दोनों अंको को ’प्रवासी कहानीकार अंक’ कहा (मुखपृष्ठ) गया है, जबकि इन्हें ’अमेरिकी हिन्दी कहानीकार अंक’ कहना अधिक उचित रहा होता.
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शोध दिशा : प्रवासी कहानीकार अंक
(जुला.-सित. और अक्टू.-दिस.,२०१०)
अतिथि सम्पाद : इला प्रसाद
सम्पादक : डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल – प्रबंध सम्पादक – डॉ.मीना अग्रवाल
हिन्दी साहित्य निकेतन
१६,साहित्य विहार, बिजनौर-२४६७०१ (उ.प्र.)

ई मेल : giriraj3100@rediffmail.com
Phone No. 01342-263232, 098368141411
प्रत्येक अंक का मूल्य : ३०/-
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समीक्षा का अंक -३

समीक्षा पत्रिका का अंक-३ (अक्टू.-दिसम्बर-२०१०) प्रभात कालीन सूर्य की आभा बिखेरता उत्कृष्ट साज-सामग्री के साथ पाठकों के समक्ष है. प्रथम दृष्ट्या अंक में जहां सत्यकाम की गंभीर सम्पादकीय दृष्टि परलक्षित है वहीं प्रबन्ध सम्पादक महेश भारद्वाज का प्रकाशकीय वैशिष्ट्य भी दृष्टव्य है. जब कोई समीक्षा पाठकों में समीक्ष्य कृति पढ़ने की लालसा उत्पन्न कर देती है, वह एक सार्थक समीक्षा होती है. समीक्षा केवल पुस्तक-रचना के प्रति शब्द-विलास ही नहीं होनी चाहिए, जिसमें समीक्षक मात्र अपना पांडडित्य प्रदर्शित करे. पाठकों के प्रति उसमें एक दायित्व-बोध भी होना चाहिए कि वह किसी पुस्तक की समीक्षा किसके लिए और किसलिए लिख रहा है. ’समीक्षा’ त्रैमासिक के प्रस्तुत अंक में प्रकाशित सभी समीक्षाएम इस मायने में महत्वपूर्ण हैं कि उनके समीक्षक अपने दायित्व-बोध के प्रति जागरूक हैं. यही करण है कि सभी पुस्तकों की समीक्षाएं ध्यानाकर्षित ही नहीं करतीं वे उस पुस्तक की विषयवस्तु से पाठक को अवगत कराती हुई उस तक पहुंचने के लिए उसमें आकर्षण भी उत्पन्न करती हैं. समीक्ष्य अंक में – डॉ. नामवर सिंह की पुस्तक ’हिन्दी का गद्यपर्व पर रवि श्रीवास्तव की समीक्षा, मैनेजर पांडेय की पुस्तक – ’मैनेजार पांडेय की आलोचना दृष्टि ’ पर देवशंकर नवीन की समीक्षा और निर्मला जैन की पुस्तक – दिल्ली शहर दर शहर’ पर अजितकुमार की समीक्षा ऎसी ही उल्लेखनीय समीक्षाएं हैं.

इनके अतिरिक्त जितेन्द्र श्रीवास्त (प्रेमचंद और दलित विमर्श/कांतिमोहन), अरुण कुमार (नवजागरण और हिन्दी आलोचना/रमेश कुमार), रजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय (मिथक से आधुनिकता तक/रमेश कुंतल मेघ), मुन्नी चौधरी (सामाजिक न्याय एक सचित्र परिचय/राम पुनियानी), शिवनारयण (पचकौड़ी/शरद सिंह), गोपाल प्रधान (मैंने नाता तोड़ा/सुषम बेदी), सत्यकाम (विसर्जन/राजू शर्मा) के साथ विद्या सिन्हा, वेदप्रकाश अमिताभ , ओम गुप्ता, रोहिणी अग्रवाल, सत्यकेतु सांकृत, कृष्णचंद्र लाल और वीरेन्द्र सक्सेना की समीक्षाएं भी उल्लेखनीय हैं.

समीक्षा दूसरी पत्रिका है, जिसने उपेन्द्रनाथ अश्क को स्मरण किया है. इससे पहले हिन्दी के इस सशक्त कथाकार को नया ज्ञानोदय ने अपने दिसम्बर अंक में याद करते हुए पाठकों को बताया कि यह उनका भी शताब्दी वर्ष है. उन पर सत्यकाम का सम्पादकीय महत्वपूर्ण है. लेकिन गोपाल राय का ’सांच कहैं’ ने एक बार फिर मन मोह लिया.

’समीक्षा’ – संस्थापक सम्पादक - गोपाल राय
सम्पादक – सत्यकाम
प्रबन्ध सम्पादक – महेश भारद्वाज
प्रबंध कार्यालय
सामयिक प्रकाशन
३३२०-२१ जटवाड़ा, नेताजी सुभाष मार्ग,
दरियागंज, नई दिल्ली-११००२
फोन नं ०११-२३२८२७३३

सम्पादकीय कार्यालय
एच-२, यमुना, इग्नू, मैदानगढ़ी,
नई दिल्ली – ११००६८
फोन : ०११-२९५३३५३४

3 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

'शोध दिशा' की पीडीएफ़ फ़ाइल मैंने देखी और पढ़ी है। इला जी के संपादन की कुशल छाप इसमें दिखाई देती है। अमेरिका में रह रहे हिंदी कहानीकारों की सशक्त कहानियां एक जगह पढ़कर जो तस्वीर मेरे मन में बनी, वह यह कि विदेशों में हिन्दी में लिखा जा रहा कथा-साहित्य सचमुच इग्नोर किया जाने वाला साहित्य नहीं है। तुम्हारी इस बात से भी मैं सहमत हूँ कि इसे प्रवासी न कहकर 'अमेरिकी हिंदी कहानीकार अंक' कहा जाता तो अधिक उपयुक्त और सार्थक होता।

rachana ने कहा…

अमेरिकी हिंदी कहानीकार अंक'bahut sunder baat kahi aap ne .
sach me ila ji ne bahut mehnat se kaam kiya hai.giriraj ji aur ila ji badhai ke patr hain
saader
rachana

Devi Nangrani ने कहा…

Shodh disha ka kahani ank padha aur Ilaji ke sampadan ki jhankiaan vahan paayi. Subash Neerav ji ki baat mein dum hai. Hindi Bhasha mein likha gaya sahitya Hindi sahitya ka hissa hai..aur kuch nahin....kahanion ke chunav ke liye Ila ji ko badhayi