शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

वातायन-अप्रैल,२०११



हम और हमारा समय

इतिहास रचते अन्ना हजारे

रूपसिंह चन्देल

५ अप्रैल, २०११ एक ऎतिहासिक दिन बन गया. सुप्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे ने देशव्यापी भ्रष्टाचार को लेकर ’जन लोकपाल बिल’ के लिए दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया. केन्द्र सरकार ने उनके अनशन और उनके साथ खड़ी जनता के शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को बहुत हलके से लिया और कांग्रेस के प्रवक्ता ने इसे उठाया गया एक अनुचित कदम करार दिया. लेकिन अन्ना हजारे को लाखों लोगों से मिल रहे समर्थन ने सत्ता में बैठे मदमस्त मंत्रियों की नींद हराम कर दी है. अन्ना के अनुसार कुछ को छोड़कर सभी नेता भ्रष्ट हैं---- तो सोचा जा सकता है कि सत्ता-शक्ति से लैस मंत्री कितना भ्रष्ट होगें. अन्ना के इस आंदोलन से सरकार में सुगबुहाट हुई और इस बिल में संशोधन सुझाने के लिए उसने अपने तीन मंत्रियों की समिति गठित कर दी, जिसमें वीरप्पा मोइली, कपिल सिब्बल और शरद पवार शामिल थे. मोइली साहब को ए राजा अपराधी नहीं लगे, कपिल साहब ने टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले को ही सिरे से खारिज कर दिया था, जबकि शरद पवार साहब के विषय में पूरी दुनिया जानती है. इन नामों पर अन्ना हजारे को आपत्ति थी तो शरद पवार ने अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री को भेज दिया.

आखिर सरका र जन लोक बिल से घबड़ाई हुई क्यों है और वह ट्यूनीशिया,मिश्र और लीबिया की घटनाओं से सबक क्यों नहीं ले रही ! आज लोग दिल्ली के जंतर-मंतर को मिश्र के तहरीर चौक की संज्ञा दे रहे हैं और यदि सरकार का यही अड़ियल रुख रहा तो यह स्थान तहरीर से भी बड़ा इतिहास लिखने को तैयार दिख रहा है.

हम सभी जानते हैं कि ’जन लोकपाल बिल’ आते ही उन भ्रष्ट लोगों की मुसीबतें बढ़ जाएंगी जो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं. तब दिल्ली की मुख्यमंत्री शिगंलू रेपोर्ट को खारिज करते हुए उसमें उठाए गए प्रश्नों पर अपने अधिकारियों की समिति नहीं गठित कर पाएंगी, जिसने दिल्ली की जनता को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि समिति में शामिल उनके उन अधिकारियों की निर्मल छवि की क्या गारण्टी है! अब यह ’ओपेन सीक्रेट’ है कि कामनवेल्थ गेम्स के घोटाले में नेताओं सहित कितने ही अधिकारियों ने अपना भविष्य सुरक्षित कर लिया है. स्पष्ट है कि इस समिति की विश्वसनीयता जनता की दृष्टि में संदेश के घेरे में है उसी प्रकार जैसी केन्द्र सरकार के उन मंत्रियों की जिन्हें ’जन लोकपाल बिल’ के लिए नियुक्त किया गया था.

आज देश का कौन-सा विभाग है जो भ्रष्टाचार से अछूता है. बचपन में सुनता था कि देश में एक विभाग ऎसा है जहां भ्रष्टाचार नहीं है--- वह था सैन्य विभाग. सैन्य विभाग से मेरा आभिप्राय सेना के तीनों अंगों से है, लेकिन आज सर्वविदित है कि ये विभाग भ्रष्टाचार में कितना डूबे हुए हैं. मेरे बचपन में भी शायद इन विभागों के कुछ क्षेत्रों में भ्रष्टाचार व्याप्त था. कम से कम एम.ई.एस. जैसी जगहें तो थीं ही.

आज आदर्श सोसाइटी घोटाला, सुखना मामला ही नहीं रक्षा विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से उसकी हजारों एकड़ जमीन पर भूमाफिओं का कब्जा है और कितनी ही एकड़ जमीन पर इन माफियाओं ने भवन निर्माण कर अरबों कमा भी लिए हैं. सोचा जा सकता है कि जिन अधिकारियों की मिलीभगत से यह सब हो रहा है उन्हें क्या मिला होगा. और हमारे रक्षा मंत्री जी को यह पता ही नहीं है कि रक्षा विभाग के पास कितने हजार एकड़ जमीन है. इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि देश की रक्षा की बागडोर संभालने वाले सेनाध्यक्ष अनेकों घोटालों में शामिल हों और इससे बड़ी बेशर्मी की क्या बात हो सकती है कि फौज के कोटे की शराब और राशन की लूट में उसके उच्चाधिकारी शामिल हों. कल तक भ्रष्टाचार के लिए बदनाम पुलिस से कहां पीछे है सेना--- फर्क सिर्फ इतना है कि यहां उच्च अधिकारी और मझोले अफसर भ्रष्टाचार कर रहे हैं, जबकि पुलिस में ऊपर से नीचे तक वह व्याप्त है. सैन्य बलों में यह संख्या कम है, फिर भी इस रोग का इलाज यदि समय रहते नहीं किया गया तो यह संक्रामक हो सकता है और तब पुलिस और सैन्य बलों के बीच दिख रहा अंतर मिट जाएगा. इसीलिए ’जन लोकपाल बिल’ आना आवश्यक है.

जब हम भ्रष्टाचार की बात करते हैं तब टू जी स्पेक्ट्रम और कामनवेल्थ गेम्स को कैसे भूल सकते हैं. अकेले टू जी घोटाला इतनी बड़ी लूट थी कि इतनी बड़ी लूट अंग्रेजों ने देश के दो सौ वर्षों के शासनकाल में भी नहीं की थी. और कामनवेल्थ गेम्स--- दो हजार करोड़ रुपयों में पूरी हो जाने वाली योजनाओं के लिए साठ-सत्तर हजार करोड़ रुपए खर्च किए गए. इसका मोटा अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के बस स्टैण्ड्स की शेडिंग का जो कार्य एक करोड़ अस्सी लाख में पूरा होना था उसके लिए बयालिस करोड़ रुपए खर्च किए गए. प्रश्न है कि शेष धन कहां गया. दिल्ली सरकार ने तीन आई.ए.एस अधिकारियों की समिति गठित कर दी है वे बताएंगे. ए राजा फंस गए ---- कुछ और लोग भी सलाखों के पीछे हैं, और शायद ऎसा इसलिए कि तमिलनाडु के चुनाव होने थे. लेकिन कब तक ये रहेंगे जेल में कहा नहीं जा सकता. होता यह है कि बड़ी मछलियां मदमस्त घूमती रहती हैं और जिनके इशारों पर दूसरे काम करते हैं उन्हें दबोच लिया जाता है --- जनता की आंखों में धूल --- कलमाड़ी बाहर कैसे हैं--- सरकार के पास उत्तर नहीं है. लीबिया को एक कर्नल गद्दाफी ने लूटा और मिश्र को एक होस्नी मुबारक ने, जबकि भारत में हजारों गदाफी और होस्नी मुबारक मौजूद हैं और सरकार चुप है. ऎसे गद्दाफियों और होस्नी मुबारकों के लिए ही ’जन लोकपाल बिल’ की आवश्यकता है.

लेकिन अब इस पर भी राजनीति प्रारंभ हो गयी है. मैं गलत भी हो सकता हूं लेकिन सरकार की मंशा सही नहीं दिख रही. अंग्रेजों ने फूट डालो और राजनीति करो का रास्ता अपनाया था. साठ वर्षों में देश ने राजनीतिज्ञों को अंग्रेजों की उसी नीति के नक्शेकदम पर चलते देखा है. अन्ना हजारे के इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन को तोड़ने की कोशिश की जा सकती है, वैसे ही जैसे हसन अली द्वारा नेताओं की काली कमाई को हिल्ले लगाने के उसके खुलासे से परेशान उन अपराधी राजनीतिज्ञों ने जांच एजेंसी के खिलाफ एन.जी.ओ. आदि को लगाकर उन्हें भ्रष्ट करार देने के प्रयास तेज कर दिए हैं. एजेंसी के कार्य को बाधित करने के तौर तरीके में से यह एक है. इससे वे जनता की दृष्टि में आने से बचना चाहते हैं. लेकिन जनता ने जान लिया है कि कौन कितना भ्रष्ट है. जिस हसन अली पर सत्तर हजार करोड़ रुपए इनकम टैक्स का बकाया है, दश देशों में जिसके गुर्गे देश के राजनीतिज्ञों, उद्योग पतियों, फिल्मी हस्तियों आदि का काला धन बैकों में जमा करने के लिए कार्यरत हैं, वह धन कितने लाख हजार करोड़ होगा---- अनुमान ही लगाया जा सकता है. कहते हैं कि उसके वापस आने से देश की अर्थव्यवस्था अमेरिका से अधिक अच्छी हो जाएगी. भारत एक बार पुनः सोने की चिड़िया बन जाएगा--- लेकिन क्या सच में ऎसा हो सकेगा ! इसी सच के लिए अन्ना हजारे ने आमरण अनशन प्रारंभ किया है, जिनके साथ देश की एक अरब जनता खड़ी है. मैं इक्कीस करोड़ लोगों को छोड़ रहा हूं, क्योंकि इनमें लाखों वे शामिल होंगे, जिनके लिए ’जन लोकपाल बिल’ गले का फंदा बनेगा.

एक बार पुनः भारतीय मीडिया (विशेष रूप से इलेक्ट्रानिक मीडिया) ने अन्ना हजारे के सपोर्ट में कमर कस ली है. साहित्यकार, पत्रकार, कुछ फिल्मी हस्तियां (रामगोपाल वर्मा जैसे लोगों को छोड़कर जो यह कहते हैं कि अपना वजन घटाने के लिए डायटिंग कर सकते हैं भ्रष्टाचार के विरोध के लिए नहीं) कलाकार --- अन्ना के साथ हैं. एक आवाज आज एक अरब लोगों की आवाज बन गई है. यदि इस बार देश चूक गया तो यह निश्चित है कि भ्रष्टाचारियों के नाखून और दांत और तेज हो जाएंगे और देश को भयंकर लूट से बचाया नहीं जा सकेगा, क्योंकि ये लुटेरे साम्राज्यवादी ब्रिटिश सरकार से अधिक घातक हैं . घातक इसलिए,क्योंकि ये हमारे बीच से हैं. ’ जन लोकपाल बिल’ ही इन्हें नख-दंत विहीन कर सकता है.

वातायन के माध्यम से मैं आशा करता हूं कि आप्रवासी भारतीय भी अन्ना हजारे के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करेंगे.

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वातायन के इस अंक में प्रस्तुत है कन्नड़ के वरिष्टतम लेखक एस.एल.भैरप्पा से मेरी बातचीत.

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

padh liya yah ank.achha hai.

Krishnabihari

बेनामी ने कहा…

सचिव वैद गुरु तीन जो प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धरम तन तीनि को होइ बेगिही नास॥

बलराम अग्रवाल

बेनामी ने कहा…

प्रिय रूप जी ,
एक विचारणीय लेख . आपकी बात सही है
कि आज हर विभाग भ्रष्टाचार में लिप्त है . रिश्वत
दिए बगैर कोई काम नहीं बनता है . नेता , अभिनेता ,लेखक , कवि , सम्पादक , चपरासी , पुलिस प्राय:हर कोई बेईमान है . पत्रिका के सम्पादक उन्हीं की रचनाओं ( भले ही घटिया हों ) को प्रमुखता देते हैं जो उनके " ख़ास " हैं . भ्रष्टाचार पर लिखने वाले कवि
लाखों रूपये कवि सम्मेलनों से कमाते है लेकिन टैक्स की चोरी करते हैं . यही हाल कमोबेश अध्यापकों का है जो ट्यूशन करते हैं . किस किस का जिक्र करूँ ?

इस हमाम में प्राय: सभी नंगे हैं . मैंने कभी लिखा था:

"क्यों कर रहे हो आज तुम उलटे तमाम काम
अपने दिलों की तख्तियों पे लिख लो ये कलाम
तुम बोओ बबूल तो होंगे कहाँ से आम"

किसी शायर ने कितना सटीक कहा है -

हर शाख पे उल्लू बैठे हैं
अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा

अन्ना हजारे अपने मिशन में कामयाब होने चाहिए.

प्राण शर्मा (यू.के.)

सुभाष नीरव ने कहा…

भाई चन्देल, तुम्हारा यह आलेख पहले पढ़ लिया था परन्तु, टिप्पणी छोड़ने में आ रही दिक्कत के कारण मैं टिप्पणी नहीं छोड़ पाया। नि:संदेह तुम्हारा यह आलेख विचारणीय है और तुमने बहुत बोल्ड होकर अपनी बात कही है। 'भष्ट्राचार' इस देश को दीमक की भांति नष्ट करने पर तुला है। आज एक अन्ना हजारे नहीं, इस देश को उन जैसे सैकड़ों-हजारों अन्नाओं की ज़रूरत है। उन्हें जिस प्रकार से भारतीय जनता का, विशेषकर युवा पीढ़ी का समर्थन मिला, उससे यह साफ़ हो जाता है, यदि कोई ऐसे मुददों पर लोकतांत्रिक ढ़ंग से अपना विरोध दर्ज़ करे तो जनता उसका साथ देती है। यह नहीं कि अपनी मांगों को मनवाने के लिए आम जनता को तंगी-परेशानी में डालकर सरकार का ध्यान खींचा जाए। जैसे पिछले दिनों रेल की पटरियों पर कब्ज़ा करके आवागमन का चक्का जाम किया गया। इससे आम जनता कितनी परेशान हुई, सभी जानते हैं।
इधर देखता हूँ, कि हम और हमारा समय के अन्तर्गत तुम्हारे आलेख जबरदस्त होते हैं। 'वातायन' यदि ब्लॉग जगत में पोपलर है तो शायद उसकी यह वजह भी है।

kavita verma ने कहा…

vicharniya aalekh...ham sab ko jag kar anna hajare ke sath khade hona hi hoga...