शनिवार, 7 मई 2011

लघुकथाएं




काली चरण प्रेमी की लघुकथाएं



कालीचरन प्रेमी





(१)

जहरीला इंसान


पीपल के वृक्ष के नीचे एक विशाल चबूतरा बना था। गांव के पांच-छः बुजुर्ग वहां बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। साथ ही उनमें बहस छिड़ रही थी कि संसार में सबसे जहरीला जीव कौन-सा है? कोई कहता अजगर है। कोई बिच्छू बताता तो कोई नेवले को सबसे जहरीला साबित करता। कुछ बुजुर्गों ने जहरीले जीवों में छिपकली,गिरगिट, मगर और कानखजूरा को प्रमुख स्थान दिया। बहस बदस्तूर थी, कोई सर्वमान्य निर्णय नहीं हो पा रहा था।

तभी जाने कहां से वहां एक कुख्यात गुंडा आ धमका। उसने सबके सामने राह चलते एक व्यक्ति की चाकू घोंपकर हत्या कर दी और बैग छीनकर चलता बना। यह सरेआम खून-खराबा देखकर बुजुर्ग आतंकित हो गए। ठीक उसी समय एक बुजुर्ग गुंडे की तरफ संकेत करते हुए फुसफुसाया, ‘‘भाइयो, संसार में सबसे जहरीला जीव इन्सान है।’’

सभी बुजुर्गों ने यह निर्णय मौन रूप से स्वीकार लिया।

(2)

बदलते रिश्ते

फिल्म का नाइट शो छूटा। वे दोनों प्रेमी भीड़-भाड़ से बचते हुए एक संकरी गली में दाखिल हो गए। फिल्म शायद बेहद रोमांटिक थी। ऐसा उनके मूड से जाहिर हो रहा था।

तभी सामने शिकार की तलाश में घूमते हवलदार जी उन्हें नजर आए। प्रेमी प्रेमिका से छिटक गया। साथ-साथ चलते हुए दोनों ने थोड़ा फासला ले लिया। हवलदार जी अब भी मूंछें पैना रहे थे।

‘‘कमबख्त! यह झंझट कहां से आ खड़ा हुआ, ‘‘प्रेमी बुदबुदाया।

‘ऐ! कहां से आ रहे हो? लगता है घर छोड़कर भागे हो,’’ रोबीली आवाज ने सन्नाटा चीरा।

वे तनिक घबराए। फिर प्रेमी ने जेब से एक दस का करारा नोट निकाला और हवलदार की तरफ बढ़ाते हुए बोला - ‘‘हवलदार जी, आप खामखाह हम पर शक कर रहे हैं। हम तो भाई-बहन हैं।’’

और अवलदार जी मान गए।

(3)

पत्थर के लोग


‘‘कहिए, इतनी रात गए कहां?’’ मेरे घर के सामने से वह चुपचाप गुजर रही थी तो मैंने उत्सुकता वश टोक दिया।

‘‘बच्चों का पेट भरने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा।’’

‘‘क्या करोगी?’’ ‘‘कोई ग्राहक फंसे शायद....।’’ वह सीधा-सपाट उत्तर देते हुए उतावली-सी आगे बढ़ने लगी।

‘‘ठहरो।’’ मैं उसकी मनोदशा भांच गया। ‘‘आज रोटी मेरे घर से ले जाओ। कल तुम्हारे लिए किसी रोजगार का प्रबंध करूंगा।’’

मैंने कुछ रोटियां देकर उसे चलता किया।

‘‘क्यों आज मास्टर को भी अपने चक्कर में फांस लिया?’’ उसके हाथ में रोटियां देख किसी ने संदिग्ध सवाल उछाला।

मैं तिलमिलाकर रह गया।

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1 टिप्पणी:

ashok andrey ने कहा…

kalicharan jee kii laghu kathaen padin bahut behtareen rachnaen hain mai aaj tak unhen kabhi pad nahi payaa iska mujhe aphsos rahegaa