शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

लियो तोलस्तोय का अंतरंग संसार



मैक्सिम गोर्की के साथ तोलस्तोय





प्राक्कथन


रूपसिंह चन्देल

लियो निकोलाएविच तोल्स्तोय के अंतिम और अप्रतिम उपन्यास ’हाजी मुराद’ का अनुवाद करते समय न केवल उस महान लेखक के विषय में अधिकाधिक जानने बल्कि उनके पढ़े हुए साहित्य को पुनः पढ़ने की इच्छा जागृत हुई. यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि उनके विषय में आलोचनात्मक, संस्मरणात्मक, जीवनीपरक---विपुल साहित्य उपलब्ध है. इसी प्रक्रिया में ’हेनरी त्रायत’ और ’विक्तोर श्लोव्स्की’ की जीवनियां पढ़ा. दोनों जीवनीकारों ने उनके रिश्तेदारों, मित्रों, सहयोगियों, लेखकों ,कलाकारों आदि के संस्मरणों, पत्रों और उनकी डायरियों को अपनी जीवनियों में अनेकशः उद्धृत किया है. इससे उन सबको मूल में पढ़ने की इच्छा हुई और तब खोज प्रारंभ हुई उन संस्मरणों, पत्रों और डायरियों की. जो सामग्री मुझे प्राप्त हुई और जिनका अनुवाद मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं मेरा अनुमान है उससे कम सामग्री मेरे लिए अप्राप्य रही. प्राप्त सामग्री में अधिकांशतया संस्मरण, तोलस्तोय की पत्नी सोफिया अंद्रेएव्ना की डायरी, पी.एम. त्रेत्याकोव के नाम आई.एन. क्रम्स्काई के दो पत्र, और मैक्सिम गोर्की की टिप्पणियां और उनका एक पत्र शामिल हैं. इन सबसे गुजरते हुए लियो तोलस्तोय के जीवन के अनेक अज्ञात पहलू मेरे समक्ष उद्घाटित हुए. मैंने अनुभाव किया कि वह न केवल महान लेखक थे बल्कि एक ऎसे महामानव थे जो सदियों में जन्मते हैं. कहना अत्युक्ति न होगा कि विश्व के वह एक मात्र ऎसे महानतम लेखक थे जिनका जीवन और लेखन उत्कृष्ट, चमत्कारिक और अतुलनीय था. उनका नाम होमर (Homer), लूथर (Luther) और बुद्ध के साथ जोड़ा गया. वह बुद्ध के दर्शन से अत्यधिक प्रभावित थे. उनकी मृत्यु से दस वर्ष पहले चेखव ने याल्टा में कहा था, ’तोलस्तोय की मृत्यु को लेकर मैं भयभीत हूं. यदि वह मर जाते हैं, मेरे जीवन में एक विशाल शून्यता उत्पन्न हो जाएगी. उनके बिना हमारा साहित्य बिना चरवाहे का रेवड़ हो जाएगा.’
चेखव से लगभग बीस वर्ष पहले तुर्गनेव ने भी तोलस्तोय के विषय में कुछ ऎसे ही विचार व्यक्त किए थे और उनकी मृत्यु से दो वर्ष पहले अलेक्जेंदर ब्लॉक (Alexander Block) ने भी ऎसा ही भय प्रदर्शित किया था. न केवल प्रगतिशील बुद्धिजीवी उनकी मृत्यु से अपने को अनाथ और उनके नेतृत्व से वंचित अनुभव कर रहे थे, बल्कि साधारण जन भी वैसा ही अनुभव कर रहे थे.
तोलस्तोय की बेधक दृष्टि--- बाह्यातंर तक सब कुछ जान लेने की क्षमतावाली दृष्टि…के विषय में उनके कई मित्रों ने अपने संस्मरणों में उल्लेख किया है, लेकिन उसमें पर-दुखकातरता थी. उनका हृदय अपने मित्रों, परिचितों, परिजनों और गरीब किसानों के प्रति अगाघ प्रेम से ओतप्रोत था. किसानों की विपन्नता उन्हें विचलित करती थी. २८ जून, १८८१ को तोलस्तोय ने अपनी डायरी में लिखा, ’मैं एक गरीब आत्मा को देखने गया. वह एक सप्ताह से बीमार है. उसे दर्द और कफ है. पीलिया बढ़ रहा है. कुर्नोसेन्कोव को पीलिया था. कोन्द्राती उसी से मरा. गरीब लोग पीलिया से मर रहे हैं. वे फलाला से मर रहे हैं.’ वह आगे लिखते हैं, ’उसकी पत्नी की गोद में एक बच्चा है. तीन लड़कियां हैं और भोजन नहीं है. चार बजे तक उन्हें भोजन नहीं मिला था. लड़कियां सरसफल तोड़ने गयी थीं और वही उनका भोजन था.’
अपने संस्मरण ’यास्नाया पोल्याना से लेव निकोलाएविच का प्रस्थान’ में दुसान पेत्रोविच मकोवित्स्की ने लिखा, ’ लेव निकोलाएविच शांत थे. कम बोल रहे थे और ऎसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह थके हुए थे. पिछले दिन हमने कठिन और थकाऊ घुड़सवारी की थी. प्रस्थान से ठीक पहले मैंने गांव की दो गरीब महिलाओं से बात की थी, जो आग का शिकार थीं और ऎसा प्रतीत हो रहा था कि वे सहायता प्राप्त होने की आशा में तोलस्तोय की प्रतीक्षा कर रही थीं. जब वह आए उन्होंने उन्हें ग्रामीण सोवियत से प्राप्त हलफनामा दिखाया, लेकिन तोलस्तोय इतना अस्तव्यस्तता की स्थिति में थे कि उन्होंने न तो उन महिलाओं से बात की और न ही उन्हें पैसे दिए. मुझे याद है कि इससे पहले ऎसा कभी नहीं हुआ था.’
वह किसानों और गरीबों के मसीहा थे…अहर्निश उनके विषय में सोचने और उनके लिए कुछ न कुछ करते रहने वाले. वेरा वेलीच्किना; मैक्सिम गोर्की और इल्या रेपिन के संस्मरण इस विषय में पर्याप्त प्रकाश डालते हैं. अपने संस्मरण ’काउण्ट लेव निकोलाएविच तोल्स्तोय’ में रेपिन लिखते हैं :
’एक दिन यास्नाया पोल्याना में हम एक नंगे पांव मुज़िक से मिले जो सहायता प्राप्त करने के लिए लेव निकोलाएविच के पास जा रहा था . खेत बोने के लिए उसे बीज चाहिए थे.
’तुम्हे मिल जाएगें’ लेव निकोलाएविच ने सहजतापूर्वक कहा . ’मैं कह दूंगा. एक घण्टा बाद आ जाना __ कारिन्दा वह तुम्हे दे देगा.’
तोल्स्तोय ने इसी संदर्भ में रेपिन से कहा , ’गरीबी जीवन के महत्तम शिक्षकों में से एक है.’
‘युद्ध और शांति’, ‘अन्ना कारेनिना’, ‘पुनरुत्थान’, और ‘हाजी मुराद’ उपन्यास, तीन आत्मकथात्मक उपन्यास – ‘बचपन’, ‘किशोरावस्था’, और ‘कज्ज़ाक’, ‘फ़ादर सेर्गेई’, ‘इवान इल्यीच की मृत्यु’, ‘क्रुज़र सोनाटा’ (लंबी कहानी), ‘घोड़े की कहानी’, ‘बाल नृत्य के बाद’ आदि कहानियाँ, ‘अंधकार की सत्ता’ तथा ‘जीवित शव’ नाटक सहित लगभग पचीस कृतियों के लेखक तोलस्तोय ने जीवन से ही अपने पात्रों के चयन किए. उन्होंने रूसी जनता के कार्यों, खुशियों और दुखों को जिसप्रकार अभिव्यक्त किया उसने उन्हें विश्व साहित्य में महानता के शिखर पर पहुंचा दिया. विषय और भाषा के चयन के प्रति वह अत्यधिक सतर्क रहते थे. संतुष्ट होने तक बार-बार लिखते थे. ६ अक्टूबर, १८७८ को अपनी डायरी में सोफिया अंद्रेएव्ना ने लिखा, ’सुबह मैंने लेव को नीचे की मंजिल में डेस्क पर लिखते हुए पाया. उन्होंने कहा कि वह अपनी नयी पुस्तक के प्रारंभ को दसवीं बार पुनः लिख रहे थे.’ मैक्सिम गोर्की से उनकी कहानी लोअर देप्थ्स (Lower Depths) पर चर्चा करते हुए तोलस्तोय ने पूछा, ’किस कारण तुमने इसे लिखा?’ गोर्की ने यथा संभव स्पष्टीकरण देने का प्रयास किया. तोलस्तोय बोले, ’तुम मुर्ग की भांति चीजों पर झपटते हो, सदैव---और फिर तुम्हारी भाषा बहुत ही चौंकाने वाली है, युक्तियों से परिपूर्ण है, यह नहीं चलेगा. तुम्हें बहुत सादगीपूर्ण लिखना चाहिए, क्योंकि लोग सादगी से बात करते हैं. वे अलग-अलग शब्द बोलते हैं, लेकिन वे अपने को अच्छी प्रकार अभिव्यक्त कर लेते हैं.’----तुम्हारे हीरो वास्तविक चरित्र नहीं हैं. वे सब कुछ, एक जैसे हैं. संभवतः तुम महिलाओं को समझ नहीं पाए. अपनी सभी महिला पात्रों के चित्रण में तुम असफल रहे हो---कोई उन्हें याद नहीं रख पाएगा.’ शायद इसीलिए तोलस्तोय से बहुत-सी बातों में वैचारिक मतभेद के बावजूद गोर्की ने कहा, ’मैं इस संसार में अनाथ नहीं हूं जब तक यह व्यक्ति इसमें वास कर रहा है.’
’लियो तोलस्तोय का अंतरंग संसार’ की रचनाओं पर कार्य करते हुए मैंने अनुभव किया कि ये उनके पारिवारिक, सामाजिक, साहित्यिक, राजनीतिक, धार्मिक---अर्थात उनके बहुआयामी जीवन के सभी पक्षों पर प्रकाश डालती हैं और इनमें उनका जीवन संपूर्णता में प्रतिभाषित है. आशा है सुहृद पाठक इसका स्वागत करेंगे.

रूपसिंह चन्देल
गुरुपर्व, १0 नवंबर, २०११

1 टिप्पणी:

neerajmittal ने कहा…

bahut bahut badhai...shandar alekh.
neeraj