रविवार, 6 मई 2012

कहानी










ये औरतें- वे औरतें
अनिलप्रभा कुमार

घंटी बजी। दरवाज़ा उसे ही खोलना था। पहले मेह्मान अन्दर आए। तीबा ने मुस्करा कर आंखें झुका लीं।
"वैल्कम -वैल्कम" कहते हुए खन्ना साहब ने बड़ी गर्म-जोशी से उनका स्वागत किया।
"भई, जल्दी तो नहीं पहुंच गए हम?"
"अरे नहीं, आप तो बिल्कुल सही वक्त पर आए हैं", कहते हुए मिसेज़ खन्ना ने मेहमान महिला को गले लगा लिया।
तीबा धीरे से रसोई-घर में सरक गई। उसे पता था अब दोनों दम्पति मैदान संभाल लेंगे।
आज वह सुबह ही आ गई थी। मैडम ने आज रात रुकने को पहले से ही कह दिया था। कल भी वह और मैडम सारा दिन किचन में काम करती रही थीं। पांच बजते ही उसकी घबराहट बढ़ गई।
"मैडम, मैं अब जाऊंगी। मेरा आदमी ग़ुस्सा होगा।" वह दुपट्टे को नए सिरे से लपेट कर सिर ढंक लेती है। कुछ ऐसे कि सूजा हुआ गाल भी ढक जाए।
मैडम उसे देखती हैं और हल्की सी उसांस निकल जाती है।
"कल जल्दी आ जाना, पार्टी है और रात भी यहीं रह जाना। काफ़ी काम होगा।"
तीबा कुछ असमंजस में खड़ी रही, कुछ कहने के लिए शब्द सोचती हुई।
"अपने आदमी को कह देना, रात रुकने के दुगुने पैसे मिलेंगे।"
"जी।" सिर हिलाकर तीबा बस पकड़ने की जल्दी में तेजी से निकल गई। सोचा, पैसे तो सारे वही छीन लेगा। ऊपर से ताबड़तोड़ घूंसे और अंगारों जैसी गालियां। उसके साथ- साथ उसके पैदा करने वालों को भी ज़लील करती हुईं।
"क़बाब गर्म हो गए?" मैडम दरवाज़े पर खड़ी पूछ रही थीं।
"जी, जी।" हकलाकर तीबा ने कहा और जल्दी से अवन का दरवाज़ा खोलकर देखा। छुआ, अभी ठंडे थे।
"पहले थोड़े से पकौड़े अन्दर दे जा, क़बाब बाद में आ जाएंगे।"
मैडम के मुड़ते ही तीबा ने कड़ाही का तेल गर्म करने के लिए स्टोव की आग बढ़ा दी। खौलते तेल को देखकर, घबराहट से उसके माथे पर पसीना छलछला आया। पीछे मुड़कर देखा, कोई नहीं था। उसने अपने को समझाया - "घबरा नहीं तीबा, यहां तुझे कोई ख़तरा नहीं।"
सीने में सांस भरी, जबड़े कसे और पकौड़े तलने शुरु कर दिए।
मैडम फिर दरवाज़े पर थीं।
उसने पकौड़ों की ट्रे उन्हें थमा दी। पहले वह झिझकीं, फिर ले ली।
"तू कब तक लोगों के सामने आने से कतराती रहेगी? जल्दी से क़बाब लेकर आ।"
उसने अपना हुलिया देखा। मैडम ने अपनी बेटी की पुरानी पैंट उसे दे दी थी। उसने ख़ुद ही लम्बी सी पूरी बांहों की कुर्ती सिल कर पहन ली। मैडम सिर ढकने से ग़ुस्सा होती हैं और उसे इन कपड़ों में, ख़ासकर बिना दुपट्टे के अजीब लगता है। उसने दुपट्टे को स्कार्फ़ की तरह गले में लपेट लिया, जैसे मैडम ने कहा था।
अवन से क़बाब की ट्रे बाहर निकालते वक्त बांह में बड़ी तेज़ टीस उठी। उसने अपने को संभाल लिया। बीच वाले हॉल कमरे में पार्टी का इंतज़ाम था। अन्दर से क़हक़हों, गिलासों के खनकने की आवाज़ों के साथ-साथ सेंट की मिली-जुली ख़ुशबू से उसे पता चल गया कि अन्दर और भी लोग आ चुके हैं।
क़बाबों की ट्रे को संभालती हुई वह अन्दर आ गई। पहले वाला जोड़ा सोफ़े पर बैठा था। अब तक दो जोड़े और आ चुके थे। वह सभी खन्ना साहब के पास खड़े बतिया रहे थे। नीली झिलमिलाती साड़ी में लिपटी, हीरे के झुमके डुलाती जया मैडम अकेली ही आईं थीं। तीबा को पैंट-टॉप में देखकर मुस्करायीं।
"अरे तीबा तू तो अमरीकन बन गई !"
तीबा सकुचा गई। चाहती थी कोई उसके हाथ से ट्रे ले ले। वह ट्रे लेकर सबके आगे खड़ी हो जाती। सबसे पहले आई सिम्मी ने मना कर दिया, " भई मैं तो वैजेटेरियन हूं।"
सिम्मी के पति ने उसे कड़ी नज़रों से देखा और आगे बढ़कर दो क़बाब उठा कर अपनी प्लेट में रख लिए। तीबा तो रोज़ ऐसी नज़रों को झेलती है। धीरे से आगे बढ़ गई। प्रिया मैडम और मीता मैडम के पतियों में  भी गहरी दोस्ती है। हमेशा दोनो जोड़े एकसाथ ही आते हैं। मैडम बताती थी कि वे छुट्टियां भी इकट्ठे ही मनाते हैं। उसने ट्रे उनके सामने कर दी।
मीता ट्रे को देखती रही। बोली -"बाद में लूंगी"। वह अपने शरीर का बहुत ध्यान रखती हैं।
प्रिया का पति रजत आगे बढ़ आया। "अरे मीता, खाकर तो देखो। बहुत बढ़िया क़बाब हैं।" कहकर उसने एक क़बाब ट्रे से उठाकर मीता के मुंह की ओर बढ़ा दिया। मीता ने बड़ी नज़ाकत से एक छोटा सा टुकड़ा काटा। हुंकारा भरा फिर कहा - "मेरे हाथ में अभी वाइन है, बाद में ले लूंगी।"
"अरे वाह, भई हम किस मर्ज़ की दवा हैं? मैं खिलाता हूं।" रजत ने फिर क़बाब उसके मुंह की ओर बढ़ाया। मीता शर्मा कर हंस पड़ी। प्रिया धीरे से उठ कर जया के पास आ बैठी।
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"कैसी हो जया?"
"कैसी लगती हूं?"
प्रिया ने ऐसे देखा जैसे पहली बार देख रही हो।
"अच्छी लग रही हो। लगता है तलाक़ तुम्हें रास आ रहा है।"
जया खिलखिला कर हंस पड़ी। "आज़ाद हूं, ख़ुश हूं, अपनी ज़िन्दगी जी रही हूं, बस और क्या?"
"हमें भी राज़ बता दो भई।" प्रिया को मुस्कराने की क़ोशिश करनी पड़ी।
जया प्रिया के थोड़ा पास सरक आई। उसकी चेहरे पर आत्म-विश्वास की चमक थी। "मैंने भी तगड़ा वक़ील करके अपना पूरा हिस्सा ले लिया। उसका बिज़नेस सफल करने में मैने भी तो कोई कम मेहनत नही की। अब बस ऐश कर रही हूं। थोड़ा सोशल -वर्क भी करती हूं। अपनी एशियाई औरतें, जो घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं न, उनकी मदद के लिए यहां एक संस्था है - सखी। बस उस में वांलटियर वर्क कर रही हूं।"
"हूं, तो तुम्हें मक़सद मिल गया।" प्रिया ने ख़ोखली-सी आवाज़ में कहा।
"तेरी सास अब कैसी है ?" जया ने बड़े अपनेपन से पूछा।
"वैसी की वैसी ही है, मुसीबत पैदा करने वाली। हर बात की शिक़ायत, ख़ासकर मेरी शिकायतों से रजत के कान भरती रहती है।" प्रिया के मुंह में कड़वाहट घुल गई।
"तो तू रजत को अपना पक्ष क्यों नहीं बताती?
"मैं बोल सकती हूं क्या उसकी मां के खिलाफ़ कुछ भी?" प्रिया ने सवाल जया से नहीं अपने-आप से ही किया।
"प्रिया, तेरे लिखने में तो बड़ी बेबाक़ सचाई होती है। यह बहादुरी सिर्फ़ कागज़- कलम के लिए ही रख छोड़ी है क्या ?"
प्रिया सिर्फ़ देखती भर रही जया को। होठों तक कई बातें आईं, रुकीं और लौट गईं। वह ख़ुद भी तो यही सोचती है कि जो महसूस करती है उसे लिख तो सकती है पर कहने के लिए, होठों पर चुप्पी की इतनी भारी सांकलें उससे क्यों नहीं धकेली जातीं?
तीबा फिर से गर्म पकौड़ों की ट्रे हाथ में लेकर आ खड़ी हुई। प्रिया बैठी थी। उसने हाथ से ज़ोर डालकर ट्रे को नीचा करना चाहा। तीबा की बांह पर ज़ोर पड़ा। उसकी हल्की सी  सिसकारी निकल गई।
जया का ध्यान उसकी बांह पर बंधी पट्टी पर गया।
"क्या हुआ?" उसकी आवाज़ में चिन्ता थी।
तीबा चुप।
"बड़ा ज़ालिम है इसका आदमी ।" मेज़बान नमिता खन्ना ने खिन्न होकर कहा। सिम्मी और मीता भी पास आकर बैठ चुकी थीं।
"बहुत यातनाएं देता है इस को। तीन-चार दिन पहले यह प्रैशर-कुकर में दाल रख कर, अपनी बिल्डिंग की बेसमेंट में कपड़े लॉंड्री मशीन में डालने चली गई। ज़रा देर हो गई वापिस आने में। कुकर जल गया। बस उस जानवर ने उसी जलते कुकर से इसकी बांह को दाग़ दिया।"
"ओफ़्फ़ोह ।" जया बेचैन हो उठी। थोड़ी देर सोचती रही। पूछा - कोई बच्चा है क्या इसका?"
"उसकी भी अलग ट्रैजेडी है।" नमिता को तो आकर तीबा सब बताती है न। उसे बड़ा दुख होता है, पर करे क्या वह? उसने अपने तबक़े की औरतों से तीबा के लिए सहानुभूति इकट्ठी करनी चाही।
"बेचारी पूरे दिनों से थी। इसको लगा कि बच्चा हिल-डुल नहीं रहा। अपने आदमी से इसने कहा कि मुझे अस्पताल ले चल। कहता है कि आज रविवार है, अस्पताल बन्द है। सारी रात तड़पती रही। अगले दिन जब तक लेकर गया तब तक बच्चा मर चुका था।
मीता अन्दर ही अन्दर डूब गई। कैसी विडम्बना है- किसी के बच्चा होता नहीं और किसी को क़द्र नहीं।
"तीबा इधर आ, मेरे पास बैठ।" जया ने तीबा का हाथ पकड़ कर बैठाना चाहा।"
तीबा सोफ़े पर, उसके पास बैठने में संकोच कर गई।
"कहा न, ऊपर बैठ - मेरे साथ।"
तीबा नज़रें झुकाए बैठ गई।
"क्या तेरा आदमी तुझे मारता-पीटता है?" जया ने पूछताछ शुरु की।
हामी में सिर हिलाकर तीबा रोने लगी।
"कितनी देर से है यहां, इस मुल्क में?"
"एक साल से।"
"क्या शिक़ायत है उसे तुझसे?"
"कहता है कि मैं ख़ूबसूरत नहीं, समझदार नहीं, मेरा परिवार अच्छा नहीं। बात-बात पर गालियां देता है, हाथ उठाता है।"
"तू यहां से भाग क्यों नहीं जाती?" सिम्मी से रहा नहीं गया।
"मेरा कोई नहीं है इस देश में।" तीबा ने बेबसी से कहा।
"तू क्यों सहती है यह सब कुछ? कोई ढंग की नौकरी कर ले।" प्रिया परेशान थी।
"मैं अभी कोई नौकरी नहीं कर सकती। मेरे पास ग्रीन -कॉर्ड नहीं है। वह कहता है मैं मना कर दूंगा तो अमरीकी सरकार तुझे यहां रहने की इज़ाज़त ही नहीं देगी। वापिस भेज देगी।"
"तो तुझे वह ग्रीन -कॉर्डके झांसे में ब्लैकमेल कर रहा है?" मीता ने पूछा।
तीबा सिर झुकाए चुप रही।
"तो तू वापिस क्यों नहीं चली जाती, अपने मां-बाप के पास?" सिम्मी को बात समझ नहीं आ रही थी।
तीबा ने मुंह ऊपर किया। आंसू भरी आंखो में जैसे तूफ़ान आ गया। क्या बताए इन मेम-साहबों को, इन पढ़ी-लिखी औरतों को कि ग़रीबी क्या होती है? एक गांव के स्कूल-मास्टर की पांच बेटियों में से एक खाने वाला मुंह कम हो जाने का मतलब क्या होता है?
उसने पड़ोसिन के पते से मां को चिट्ठी भिजवाई थी - अपनी सारी दुख कथा लिखी थी। जवाब भी आ गया था कि जैसे भी हो, वहीं निबाहो। परित्यक्ता औरत की उसके समाज में क्या दुर्गति होती है, सोच कर भी वह कांप जाती है। अभी तो एक तरफ़ से ही पिट रही है फिर सब ओर से पिटना होगा । किसी भी क़ीमत पर यहीं रहकर बस ग्रीन -कॉर्ड मिल जाए। अमरीका में रहने का उसे क़ानूनी हक़ मिल जाए तो वह फिर अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है। कहीं बहुत गहरे छिपी भावना भी है , बहनों को भी बुला लेने की।
"तुझे वापिस जाने की कोई ज़रूरत नहीं।" जया जो बहुत देर से सोच रही थी, बोली।
"तेरा केस बहुत सशक्त है। देख तीबा, सुन। मैं तुझे यह नम्बर देती हूं।" कहकर उसने अपने पर्स में से एक कागज़ निकाला। उस पर नम्बर लिखा।
"यह घरेलू हिंसा की शिकार औरतों के लिए हॉट-लाइन है। अगर वाक़ई तेरी जान को ख़तरा हो या तेरे ऊपर कोई मुसीबत हो तो एकदम से इस नम्बर पर फ़ोन कर देना और घर से बाहर निकल जाना। कोई न कोई तुम्हे लेने आ जाएगा। थोड़े दिन तू शैल्टर में रहेगी और फिर तुझे अपने पैरों पर खड़ा करने की क़ोशिश की जाएगी। नमिता, तू कल इसे एक अपना पुराना मोबाइल फ़ोन दे देना।"
तीबा ने बेहद ध्यान से नम्बर को देखा। कागज़ को मोड़ा और सहेज कर कुर्ती के अन्दर रख लिया। इस कागज़ में उसके लिए ज़िन्दगी का नम्बर था। नमिता ने आकर सैल-फ़ोन तीबा के हाथ पर रख दिया। तीबा कृतज्ञता से भर गयी। उसने धीरे से "शुक्रिया" कहा  और लगा कि रुलाई छूट जाएगी।
"अच्छा, अब किचन में जा।" नमिता ने कोमलता से कहा।
"ये औरतें बेचारीं।" प्रिया को तरस आ रहा था।
"हालात की मारी आ जाती हैं और यहां आकर नरक भुगतती हैं।"
" यहीं क्या, अपने देश में भी ग़रीब तबक़े की सभी औरतों की बुरी हालत है। घर -बाहर दोनों तरफ़ से पिटती हैं।"
सभी के चेहरों पर अफ़सोस था।
परमिन्दर अभी तक खन्ना साहब को बार के पास खड़ा चुटकले सुना रहा था, पास चला आया।
"तुम औरतें यह अलग से टोली बनाकर क्यों बैठ जाती हो? यहां क्या कोई परदा है कि आदमी अलग रहेंगे और औरतें अलग। क्या तुम लोग मुंह लटका कर बैठी हो। चलो मैं तुम्हें एक अश्लील चुटकुला सुनाता हूं।" वह पूरी तरह मस्ती में था।
"प्लीज़, महिलाएं बैठी हैं। सिम्मी ने हल्का सा विरोध किया।
"तो क्या हुआ? सब तुम्हारी तरह दकियानूसी नहीं हैं। ... तो क्या हुआ कि हम लोग एक बड़े फ़ैन्सी रेस्तरां में गए। वहां एक बैली डान्सर थी।..."
"प्लीज़, बस कीजिए।"  सिम्मी ने इस बार ज़ोर से प्रतिवाद किया।
"शॅट-अप", परमिन्दर उससे भी ज़्यादा ज़ोर से दहाड़ा।
सिम्मी को लगा कि जैसे  सबके बीच में उसके पति ने उसे तमाचा जड़ दिया हो। बाथरूम जाने के बहाने से उठ गई। इस वक्त वह किसी से आंख नहीं मिला सकती थी।
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"खाना लग गया है ।" नमिता ने आकर घोषणा की।
"आदमियों को पहले लेने दो ।" मीता ने सुझाव दिया।
"क्यों हम क्यों नहीं पहले ले सकते?" प्रिया ने सवाल उठाया।
"वाह-वाह क्या बढ़िया खाना बना है।" रजत चहक रहा था।
खन्ना साहब स्कॉच का गिलास थामे सी.डी ढूंढ रहे थे।
"जया कौन-सा म्यूज़िक सुनना पसन्द करोगी?"
"जो तुम्हें पसन्द हो।" जया ने वैसे ही जवाब लहरा दिया।
खन्ना साहिब ने कोई पुरानी फ़िल्म की रोमानी धुन बजाई।
नमिता बड़ी मुस्तैदी से किचन और डायनिंग-रूम के चक्कर काट रही थी। हर चीज़ सलीके से परोसी जाए - आकर्षक तरीक़े से। रोटी ताज़ी गर्म बाहर आए, खाना ठीक से गर्म हो। कौन सी चीज़ कहां रखी जाए। कहीं कुछ कम न पड़ जाए। तीबा बड़ी मुस्तैदी से उनके इशारों पर भाग - दौड़ रही थी।
खाना ख़त्म हुआ। मिष्ठान्न के साथ चाय-कॉफ़ी भी परोसी गई।
सब लोग खा पीकर वहीं सोफ़े और क़ालीन पर पसर गए। पृष्ठभूमि में हल्का संगीत चल रहा था। खन्ना साहब ने रोशनी धीमी कर दी। औरतों का झुंड बिखर चुका था। सिम्मी और परमिन्दर इज़ाज़त लेकर पहले ही घर चले गए। प्रिया के बांयीं ओर मीता बैठ गई और उसके दांयी ओर मीता का पति विक्रम। दाएं हाथ में गिलास थामे, विक्रम का बांया हाथ, संगीत की धुन पर प्रिया की दांयीं जांघ पर ताल दे रहा था। प्रिया सहज ही गुनगुनाने लगी। मीता आंखे बन्द किए संगीत में विभोर थी।
रजत मीता का गिलास भरकर उसे देने आया तो पल भर विक्रम को देखता रहा, जिसका हाथ अभी भी उसकी पत्नी की जांघ पर ताल दे रहा था। फिर लौट गया। दीवार पर लगी तस्वीरों को देखने लगा।
नमिता तीबा को सारी हिदायतें देकर पास आकर खड़ी हो गई।
"क्या देख रहे हैं?"
"प्रभावित हो रहा हूं। देख रहा हूं कि तुम अपने पेशे में कितनी सफल हो। कितने सम्मान और पुरस्कार मिले हैं तुम्हें। खन्ना कितना किस्मत वाला है। तुम्हारे जैसी योग्य और संभ्रांत औरत के साथ प्रेम-विवाह उसने यूं ही नहीं किया था।"
नमिता फीकी -सी हंसी  हंसी।
रजत ने उखड़ी सी नज़र से प्रिया को देखा, "चलना नहीं है क्या? तुम तो आराम से बैठी ग़ज़लें सुन रही हो, गाड़ी तो मुझे ही चलानी है न।"
विक्रम ने धीरे से हाथ हटा लिया।
प्रिया को रजत की अकारण खीज का  कारण न समझ में आया और न ही उसने परवाह की।
"खन्ना कहां गया?"
"यहीं कहीं होंगे।" कहते-कहते नमिता के चेहरे पर से एक धुंए का बादल गुज़र गया।
"बहुत बढ़िया पार्टी थी, मज़ा आ गया।" विक्रम ने अपना कोट पहन लिया। फिर प्रिया का कोट उठाकर उसे पहनाने लगा।
तीबा सौंफ़-सुपारी की ट्रे हाथ में लेकर खड़ी हो गई।
मीता हंसी, "मैंने दस्ताने पहन लिए हैं।"
रजत ने गहरी नज़रों से उसके पति को देखा। फिर मुस्करा कर अपनी हथेली में मीठी सौंफ़ ले ली। "मैने तो अभी नहीं पहने न?" कहकर उसने हथेली मीता के होठों से लगा दी। मीता सौंफ़ खा रही थी और उसकी हंसती आंखे रजत की आंखो में झांक रही थीं।
प्रिया कोट पहन चुकी थी और अब ठीक उन दोनों के बीच खड़ी थी , कहीं और देखती हुई।
खटाक से बाहर का दरवाज़ा खुला । खन्ना और जया भीतर दाख़िल हुए।
"अरे! आप लोग जा भी रहे हैं। मैं बाहर ज़रा जया को "जकूज़ी" दिखाने गया था। चांद- सितारों के नीचे, खुले में गरम पानी में बैठ कर क्या लुत्फ़ आता हैखन्ना अपनी ही रौ में था।
कोई जवाब देने के मूड में नहीं था।
"बस, अब चलते हैं, काफ़ी देर हो गई।"
"गुड-नाइट।"
"गुड- नाईट, ध्यान से गाड़ी चलाना।"
सभी चले गए।
"मै ज़रा जया को कार तक छोड़कर आता हूं", कहकर बिना पत्नी की तरफ़ देखे, खन्ना जया की कमर पर धीरे से हाथ रखकर फिर अन्धेरे में निकल गए।
नमिता सोफ़े में धंस गई।
तीबा जल्दी- जल्दी खाने का सामान समेट कर बर्तन साफ़ करने लगी । सिंक की खिड़की के बाहर कुछ झिलमिलाया। तीबा ने आंखें फाड़ कर देखा। नीली साड़ी की झिलमिलाहट वह पहचान गई। उसने घबराकर खिड़की बंद कर दी। सांस रोके ज़ोर-ज़ोर से बर्तन रगड़ती रही।
काफ़ी देर बाद कार चालू होने की आवाज़ आई। थोड़ी देर में दरवाज़ा खुला, खन्ना साहिब अन्दर आ गए।
तीबा ने किचन के दरवाज़े से झांका। मैडम गुस्से से फ़ुंफ़कारती हुई उठकर खड़ी हो गईं।
"शर्म नहीं आती आपको, सबके सामने इस तरह से खुला तमाशा करते हुए"।
"क्या बकती हो?"
"इतने बड़े बच्चों के बाप हो और यूं खुले- आम मुझे बेइज़्ज़त करते हो? क्या हो रहा था बाहर अंधेरे में?"
"शटऑप", खन्ना साहिब ने पत्नी को एक ज़ोरदार थप्पड़ रसीद किया।
"तुम्हारी इतनी हिम्मत...? पत्नी उन पर वापिस वार करने के लिए बढ़ी।
"तू सोचती है कि तू कमाती है तो मुझ पर भी धौंस जमा लेगी ।" खन्ना सहिब ने नफ़रत से भरकर पत्नी को इतनी ज़ोर से धक्का दिया कि वह ज़मीन पर औंधे मुंह गिर पड़ीं। दर्द से चीख निकल गई। ग़ुस्से, हिकारत और बेबसी से ऐसे देखा- जैसे उनके मुंह पर थूक रही हो।
"तुम नीच, ज़लील आदमी...।" वह हांफ़ने लगी। उसकी नाक से ख़ून बहकर क़ालीन पर गिर रहा था।
तीबा का बदन थर-थर कांप गया। उसने जल्दी से किचन की बत्ती बंद कर दी ताकि वह अन्धेरे में अपना वजूद छुपा सके। धीरे से सरक कर साथ लगी पैन्ट्री में घुस गई। अन्दर से चिटकनी लगा ली। आज रात यहीं ज़मीन पर बिताएगी। सीना धौंकनी की तरह धक- धक कर रहा था। उसने अपने को संभालने के लिए सीने पर हाथ रखा। कुर्ती के नीचे कुछ महसूस हुआ। देखा, पर्ची थी। वही, जिस पर उन मैडम लोगों ने हॉट- लाइन का नम्बर लिख कर उसे दिया था। फिर से तहाकर वापिस रख लिया। कल वह यह नम्बर मैडम को भी दे देगी।
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1 टिप्पणी:

ashok andrey ने कहा…

bahut achchhi kahani Abha jee ki padne ko mili tuhare blog par badhai.